Wednesday 24 August 2011

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मीना कुमारी उर्दू कविता

पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
रात खैरात कि सद्क़े की सहर होती है

सांस भरणे को तो जीना नही.न कहते या रब
दिल हि दुखता है न अब आस्तीन तर होती है

जैसे जागी हुई आंखो मे चुभे न कांच के ख्वाब
रात इस तऱ्ह दीवानो कि बसर होती है

गम हि दुश्मन है मेरा गम हि को दिल धुंडता है
एक लम्हे कि जुदाई भी अगर होती है

एक मर्कझ कि तलाश एक भटकती खुशबू
कभी मंझील कभी तम्हीद-ए-सफर होती है


-------मीना कुमारी


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